Chandrayaan 3 : चांद के साउथ पोल पर पहुंचने वाला पहला देश बना भारत, सफल लैंडिंग से पूरे देश में जश्न

Chandrayaan-3 Landing Live: चंद्रयान-3 आज शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग के साथ ही इतिहास रच दिया. इसके साथ भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया.

Chandrayaan 3

Chandrayaan-3 LIVE Updates :चंद्रयान-3 मिशन के जरिए भारत ने आज इतिहास रच दिया. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organization) के चंद्रयान-3 मिशन का लैंडर मॉड्यूल सफलता पूर्वक चंद्रमा की सतह पर उतर गया. लैंडर विक्रम (Lander Vikram) और रोवर प्रज्ञान से युक्त लैंडर मॉड्यूल ने शाम छह बजकर चार मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग की और इतिहास रच दिया.

इस सफलता के साथ भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया. इसके साथ ही भारत अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ के बाद चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया. चंद्रमा की सतह पर अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ और चीन ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कर चुके हैं, हालांकि इनमें से कोई भी देश ऐसा नहीं है जिसकी ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में हुई है. चंद्रयान-3 के लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग में 15 से 17 मिनट लगे. चंद्रयान 3 को 14 जुलाई 2023 को दोपहर 2.30 बजे लॉन्च किया गया था.

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Chandrayaan 3

इस बार चंद्रयान-3 को LVM3 रॉकेट द्वारा जिस कक्षा में लॉन्च किया गया है वह 170X36,500 किलोमीटर की एलिप्टिकल जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) है। पिछली बार चंद्रयान-2 को 45,575 किलोमीटर की कक्षा में भेजा गया था ! इस बार इस कक्षा को इसलिए चुना गया है ताकि चंद्रयान-3 (Chandrayaan 3) को अधिक स्थिरता प्रदान की जा सके !

Chandrayaan 3

Chandrayaan 3 पृथ्वी और चंद्रमा के 5 चक्कर 

इसरो (ISRO) के एक वैज्ञानिक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 170X36,500 किलोमीटर के एलिप्टिकल जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट के जरिए चंद्रयान की ट्रैकिंग और संचालन आसान और आसान हो जाएगा। चंद्रमा की ओर भेजने से पहले चंद्रयान-3 को पृथ्वी के चारों ओर कम से कम पांच चक्कर लगाने होंगे ! प्रत्येक राउंड पिछले राउंड से बड़ा होगा। यह इंजन चालू करके किया जाएगा।

चंद्रयान-3 5 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में 

इसके बाद चंद्रयान-3 ट्रांस लूनर इंसर्शन (टीएलआई) कमांड दिए जाएंगे। फिर चंद्रयान-3 सोलर ऑर्बिट यानी लंबे हाईवे पर सफर करेगा. टीएलआई 31 जुलाई तक पूरा हो जाएगा। इसके बाद चंद्रमा करीब साढ़े पांच दिन तक चंद्रमा की ओर भ्रमण करेगा। यह 5 अगस्त के आसपास चंद्रमा की बाहरी कक्षा में प्रवेश करेगा। ये गणना तभी सही होगी जब सब कुछ सामान्य स्थिति में होगा। किसी तकनीकी खराबी की स्थिति में समय बढ़ सकता है.

लैंडर की शक्ति, इंजन और लैंडिंग साइट का क्षेत्रफल बढ़ाया गया

इस बार विक्रम लैंडर के चारों पैरों की ताकत बढ़ा दी गई है. नए सेंसर लगाए गए हैं ! नया सोलर पैनल लगाया गया है. पिछली बार चंद्रयान-2 की लैंडिंग साइट का क्षेत्रफल 500 मीटर X 500 मीटर चुना गया था ! इसरो (ISRO) विक्रम लैंडर को बीच में उतारना चाहता था ! जिसके कारण कुछ सीमाएँ थीं। इस बार लैंडिंग का एरिया 4 किमी x 2.5 किमी रखा गया है. यानी चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर इतने बड़े इलाके में उतर सकता है !

उतरने की जगह खुद चुनेंगे, सारे खतरे खुद उठाएंगे

लैंडिंग के लिए सही जगह का चुनाव वह खुद करेंगे ! इस बार कोशिश होगी कि विक्रम लैंडर इतने बड़े इलाके में सफलतापूर्वक लैंडिंग कर सके. इससे उसे अधिक लचीलापन मिलता है। इस लैंडिंग पर नजर रखने के लिए चंद्रयान-2 (Chandrayaan) का ऑर्बिटर अपने कैमरे तैनात रखेगा ! साथ ही उन्होंने इस बार लैंडिंग साइट ढूंढने में भी मदद की है !

विक्रम लैंडर 96 मिलीसेकेंड में गलतियां सुधारेगा

विक्रम लैंडर के इंजन पिछली बार से ज्यादा ताकतवर हैं ! पिछली बार जो गलतियाँ हुईं उनकी सबसे बड़ी वजह कैमरा था ! जिसे अंतिम चरण में सक्रिय किया गया। इसलिए इस बार इसे भी दुरुस्त कर लिया गया है. इस दौरान विक्रम लैंडर के सेंसर गलतियां कम से कम करेंगे. उन्हें तुरंत सुधारेंगे. विक्रम के पास इन गलतियों को सुधारने के लिए 96 मिलीसेकंड का समय होगा। इसीलिए इस बार विक्रम लैंडर में अधिक ट्रैकिंग, टेलीमेट्री और कमांड एंटेना लगाए गए हैं। यानी गलती की संभावना नगण्य है !

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